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शब्दयोग सत्संग
२० अप्रैल २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
भजन
रंग महल में अजब शहर मे
रंग महल में अजब शहर में आजा रे हंसा भाई
निर्गुण राज पे सिर्गुण सेज बिछाई
है रे इना देवलिया में देव नाही,
झलर कूटे गरज कासी
रंग महल में अजब शहर मे…..
हारे भाई, बेहद की तो गम नाही,नुगरा से सेन किसी
रंग महल में अजब शहर मे….
हा रे भाई अमृत प्याला भर पाओ
भाईला से भ्रान्त कसी
रग महल में अजब शहर में आजा रे हंसा….
हा रे भाई कहे कबीर विचारसेन माहि सेन मिली
रंग महल में अजब शहर में…
प्रसंग:
कबीर साहब "हंस" का प्रयोग किसके लिये कर रहे है?
"निर्गुण राज पे सिर्गुण सेज बिछाई" का क्या आशय है?
मंदिर में देव नहीं ऐसा क्यों बता रहे है कबीर साहब ?
नुगरा का क्या अर्थ है?